Oct 17, 2012

माहेरा





कशी माहेराची ओढ,
जाते काळजाला चीर.....
            आई माझ्या संगतीने
            एक रुप तु लाविले,
            रुप त्याचे गं फुलले,
            माझ्या सोबतीने...
आज एकटेच काय,
सांग करित असेल?
माझ्याविना सांग त्याला,
येतो का गं बहर??
            पाय़ी नाचती आंगणी,
            रुमझुमती पैजणी,
            पुन्हा पुन्हा आठव हे,
            सांग येती का गं कानी?
मला पाहताच बाबा,
म्हणॆ पोर ही अजाण,
ज्याच्या हाती जाशील तू,
तेथे सुवर्णाची खाण....
            सांग त्याचे हात का गं,
            आज झालेत का सुने?
            माझ्यावाचून का त्याला,
            फिके भासते चांदणॆ....
सांग ना गं आई.....
आठवण माझी तेथे,
येते कोणा कोणा....
माझ्या श्वासाचा गं भास...
तिथे होतो कोणा कोणा...

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